भारत में शिक्षा का खर्च दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है, और जब बात क्लास 1 से 5 तक की tuition fees की आती है, तो पेरेंट्स का हैरान होना लाजमी है। क्लास 1 से 5 तक की tuition fees सुनकर पेरेंट्स हैरान! ये सिर्फ़ एक नारा नहीं, बल्कि आज की हकीकत है। छोटे बच्चों की पढ़ाई का खर्च अब इतना हो गया है कि मिडिल-क्लास परिवारों को भी सोचना पड़ता है। आइए, इसकी गहराई में जाएँ और समझें कि प्राइमरी स्कूलों की फीस इतनी क्यों और कैसे बढ़ रही है, और इसका असर परिवारों पर क्या पड़ रहा है।
प्राइमरी स्कूलों में क्लास 1 से 5 तक की पढ़ाई के लिए tuition fees अब पहले जैसी नहीं रही। छोटे शहरों में जहाँ पहले 2-3 हज़ार रुपये महीने में काम चल जाता था, अब वहाँ भी 5-8 हज़ार रुपये monthly देने पड़ते हैं। अगर आप दिल्ली, मुंबई, या बेंगलुरु जैसे बड़े शहरों में हैं, तो ये रकम 10-20 हज़ार रुपये तक जा सकती है। सालाना हिसाब करें तो private schools में 60 हज़ार से लेकर 2 लाख रुपये तक का खर्च हो सकता है। इसमें admission fees, books, uniforms, और transport जैसे extra charges शामिल नहीं हैं। पेरेंट्स के लिए ये एक बड़ा financial burden बन गया है।
कई स्कूल tuition fees के नाम पर सिर्फ़ पढ़ाई का खर्च नहीं लेते, बल्कि development charges, lab fees, और activity fees भी जोड़ते हैं। उदाहरण के लिए, एक average private school में क्लास 1 के बच्चे की सालाना फीस 80-90 हज़ार हो सकती है। अगर आप books और uniforms जोड़ें, तो ये 1 लाख के पार चला जाता है। कुछ premium स्कूल तो 2-3 लाख रुपये सालाना चार्ज करते हैं, जो college fees से कम नहीं। पेरेंट्स ये सोचकर परेशान हो जाते हैं कि इतना खर्च करके क्या guarantee है कि बच्चे को quality education मिलेगी?
शहरों के हिसाब से tuition fees में बड़ा अंतर है। tier-2 शहरों जैसे जयपुर या लखनऊ में फीस 50-80 हज़ार सालाना हो सकती है, जो फिर भी manageable लगता है। लेकिन metro cities में situation अलग है। यहाँ एक मिडिल-क्लास परिवार की monthly income का 30-40% हिस्सा बच्चों की पढ़ाई पर चला जाता है। अगर परिवार में दो बच्चे हैं, तो ये percentage और बढ़ जाता है। कई पेरेंट्स को savings में कटौती करनी पड़ती है या loans लेने पड़ते हैं। ये वो सच है जो tuition fees की चमक के पीछे छिपा है।
अब सवाल ये है कि फीस इतनी क्यों बढ़ रही है? स्कूलों का कहना है कि modern facilities, smart classrooms, और trained teachers की cost ज्यादा है। लेकिन कई बार ये fees बिना reason के बढ़ाई जाती हैं। government schools में फीस कम होती है, लगभग 10-20 हज़ार सालाना, लेकिन वहाँ infrastructure और teaching quality को लेकर सवाल उठते हैं। इसलिए ज्यादातर पेरेंट्स private schools की ओर जाते हैं, जहाँ tuition fees के साथ-साथ hidden charges जैसे annual day fees, excursion fees, और tech charges भी देने पड़ते हैं। ये सब मिलकर budget को पूरी तरह बिगाड़ देते हैं।
पेरेंट्स के लिए ये समझना ज़रूरी है कि tuition fees का comparison कैसे करें। स्कूल चुनते वक्त सिर्फ़ tuition fees नहीं, बल्कि total cost देखें। कई स्कूल sibling discounts या early admission offers देते हैं। कुछ में monthly installments की सुविधा होती है। लेकिन refund policies को भी check करना ज़रूरी है, क्योंकि admission fees अक्सर non-refundable होती हैं। budgeting tips जैसे separate savings account खोलना, generic stores से books खरीदना, या scholarships ढूँढना इस खर्च को manage करने में मदद कर सकते हैं।
क्या tuition fees का ये बोझ कम हो सकता है? कई पेरेंट्स अब community-led schools या online learning की ओर देख रहे हैं। online platforms सस्ते और flexible हैं, लेकिन प्राइमरी बच्चों के लिए physical schools ज़रूरी हैं। government की ओर से fee regulation की कोशिशें हो रही हैं, लेकिन implementation में कमी है। पेरेंट्स को PTA meetings में हिस्सा लेना चाहिए और fee hikes पर सवाल उठाने चाहिए। ये छोटे कदम स्कूलों को जवाबदेह बना सकते हैं।
अंत में, क्लास 1 से 5 तक की tuition fees सिर्फ़ पैसे का सवाल नहीं है। ये पेरेंट्स की मेहनत, बच्चों का भविष्य, और समाज की प्राथमिकताओं का सवाल है। अगर आप एक पेरेंट हैं, तो early planning और smart budgeting से इस challenge को आसान किया जा सकता है। tuition fees सुनकर हैरान होने की बजाय, सही जानकारी और preparation से इसका सामना करें। बच्चों की पढ़ाई में investment जरूरी है, लेकिन सही planning से ये बोझ कम हो सकता है।